ऐ कविता,
मैं कोई कवि नहीं, शायर नहीं,
ना ही हूँ कोई फनकार.
स्वाभाविक ही तुम असमंजस मे होगी,
की फिर कैसे मैंने तुमको रूप दिया,
अस्तित्व दिया.
ये तो सिर्फ मेरे,
भाव है, जज्बात है,
जो कलम के माध्यम से,
शब्दों द्वारा बंध गए है,
ये सिर्फ मेरे भाव है, जज्बात है.
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