तुम,
ख़त्म होते है विचार, सारे जहाँ मेरे,
उस शून्य की एक मात्र, भाव अभिव्यक्ति हो तुम.
विचारों के द्वंद में, उलझी ज़िन्दगी मेरी,
उस द्वंद का, अकेला समाधान हो तुम,
कटुता से, कई भागो में बटी आत्मा मेरी,
उस आत्मा की, अकेली पर्याय हो तुम,
आँख से बेबस बह निकले, कुछ आँसू मेरे,
उन आँसुओ को समाती, गंगा हो तुम.
खुली आँख में जो ख्वाब सजाये है मैंने,
उन ख्वाबो की, एक मात्र परिणिति हो तुम,
मेरे जीवन की एक मात्र, पूर्णता हो तुम,
मेरे शून्य की एक मात्र, भाव अभिव्यक्ति हो तुम.
continue…………………………….
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