क्या लिखूं,
आतंकवाद की कोई वेदना को व्यक्त करूँ,
या बंटते भारत की व्यथा लिखूं.
मंदिर की आरती या मस्जिद की अजान लिखूं.
बूढ़े माँ बाप की भीगी पलकों का इंतजार या बच्चे की मधुर मुस्कान लिखूं,
फिर से नया कोई प्रेम गीत लिखूं.
या ये सब बहाने है विषय तलाशने के, अपनी असहाय पड़ती कलम को छिपाने के,
क्योंकि
मेरे भाव अब खत्म हो गए हैं,
चलती फिरती लाशों के बीच में,
मैं मर गया हूँ और,
मेरी संवेदनाएं अपना वजूद तलाश रही है…
3 comments:
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
bahut khoob likha maza aa gaya
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