ऐ ज़िन्दगी तू मुझसे मिलने आती क्यों नहीं?
मेरी तन्हाई को हमराह बनाती क्यों नहीं?
कि हमने भी मुस्कुराने का मौका दिया है, लोगो को,
रूठ के जाने को, तू फिर आती क्यों नहीं?
इस रिश्ते कि कब्र पर चढाया था, एक फूल मैंने भी,
तू आखरी सलाम देने, आती क्यों नहीं?
रस्म-ऐ-मोहब्बत है, रूठने मनाने कि,
तू इस रस्म को तोड़ने फिर आती क्यों नहीं?
तेरे दीदार को अटकी है, आखरी साँस मेरी,
इस साँस को तोड़ने तू आती क्यों नहीं?
तेरे बिस्तर मैं छुपे हुए कुछ, मेरे प्यार के आँसू,
उन आँसुओ को सुखाने, आती क्यों नहीं?
बच गया है मेरा जो अक्स, तेरे दिल के किसी कोने में,
उस अक्स को मिटाने अब आती क्यों नहीं?
ऐ ज़िन्दगी तू मुझसे मिलने आती क्यों नहीं?
मेरी तन्हाई को हमराह बनाती क्यों नहीं?