रात के दूसरे प्रहर,
जनवरी की कपकपाती ठंड,
और ट्रेन मे फल्ली/लाई बेचती,
महीन सा शाल ओढे हुई ब्रद्धा को देख,
अचानक ही मन उदास हो गया.
एक पल मे ही कितने प्रश्नों ने मुझे घेर लिया.
क्या मजबूरी है इसकी?
क्या इसका कोई नहीं?
क्या इसके बच्चे निक्कमे और नकारे है?
क्यों इतनी रात को,
इस तरह ये अपना काम कर रही है?
न चलने के बाबजूद पोटली लिए,
क्यों बार बार चक्कर लगा रही है?
किंचित ही मैं इन प्रश्नों का उत्तर पर सकूँ,
या ये कहिये कि मैं असमर्थ हूँ.
पर एक प्रश्न मैं आप से,
सभ्य समाज से करता हूँ,
क्या ऐसे ब्रद्धों को सुखद जीवन का अहसास हम करा सकते है?
क्या इनके प्रति हमारा कोई कर्तव्य है?
2 comments:
haan ,agar hum samjhen to
kartvya hain to bahut ,par kis ko fursat?????
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