सड़क पर चलते, अचानक एक तस्वीर से रु-ब-रु हो गया,
दुबली पतली सी, एक हेंगर पर लटकी थी वो तस्वीर,
फ्रेम का तो पता नहीं था,
हाँ पर उसकी सारी हड्डिया बराबर ही नजर आती थी,
एक अपने ही जैसे पेड़ के आगोश में, खुद को छुपाने की कोशिश कर रही थी वो,
शायद उसको डर था की कहीं ये बारिश उसको भिगा ना दे,
नादान थी, समझ रही थी की वो अकेली है ऐसी,
खा-म-खा परेशान थी वो,
दीमक भी लगी थी उसको, कुछ दो - तीन अलग अलग तरह की,
जीवन का एक ही रंग नज़र आता था उस पर,
बस "काला"
बहुत थक गए थी, गरीबी की दीवार पर टंगे - टंगे,
इंतजार था तो उसको बस...
4 comments:
aapka blog padhkar ek sath hi tippani karna chahungi ki ..... bahut achchha likate hai aap ..aapko padhana sahi men achchha laga . aapko badhai
सार्थक प्रस्तुति, बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
bahut badiya sir..
lajawab--***
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